मैं
मैं अभी उठा हूँ आसमान देखकर
बैठा हूँ अभी बस जहान देखकर
गुज़रा था मैं तेरे दरवाज़े दस्तक दी
फिर चला अजनबी निशान देखकर
कैसे कह दूँ कि फ़िक़्र नहीं कोई
डर है तीर – ओ – कमान देखकर
तेरी चुप्पी तेरे आंसू सर आंखों पर
महफ़िल में चुप हूँ बेईमान देखकर
भले ही न तुझको कोई आवाज़ लगाऊं
समझ लेता हूँ घर को दालान देखकर
अजय मिश्र