— मैं —
किस बात की अकड़
रखता है रे बन्दे
तेरी “मैं” पल में
निकल जायेगी !!
ऐसा गिरेगा औंधे मुंह
बतीसी बाहर तेरी
निकल जायेगी !!
पड़ा मिलेगा तेरा
जातिवाद सड़क पर
सब हवा तब तेरी
निकल जायेगी !!
गुब्बारे की भाँती
फुदकता फिरता है
वक्त की आंधी में सारी
हवा तेरी निकल जायेगी !!
लिखवा कर अपनी
जाति के पर्चे समाज
में बहुत इतराता है
मत कर घुमान किसी
बात का यहाँ पर
तेरी अकड़ सारी
मिटटी में मिल जायेगी !!
एक पल नहीं लगता
उस की , लाठी को
सब पर लठियाने में
क्या जुर्म है तेरा ,
वो जानता है सब
मत कर ऐसा कुछ
उस को बताने में !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ