“मैं”
तुम्हारी कला के सम्मुख
सदैव नतमस्तक मैं …!
तुम्हारा ये सुन्दर शब्द–संयोजन
और अलंकारिक प्रस्तुति…
अहा!…कितना आह्ललाद पूर्ण ।
सदैव गदगद होती मैं…!
तुम्हारा अभिनय
मंत्रमुग्ध सा करता है!
संवाद-अदायगी,
कितनी स्वप्ननिल सी
सदैव हतप्रभ मैं…!
तुम्हारे तेज से चौंधियाती आँखें,
गुदगुदाता हृदय
सदैव प्रफुल्लित मैं …!
इन सबके बाद भी,
तुम्हारे ‘आभामंडल ‘से जगमग,
चमत्कृत सा
मेरा “व्यक्तित्व”
सदैव गौरवान्वित “मैं”..
©निकीपुष्कर