मैं
जबसे रूह पर ” मैं” का दाग़ आया
मन रूह तक गया था के भाग आया
जिन्दगी फिर जिन्दगी नाम की रही
देह के जर्रे -जर्रे में अजीब सा सैलाब आया
-सिद्धार्थ गोरखपुरी
जबसे रूह पर ” मैं” का दाग़ आया
मन रूह तक गया था के भाग आया
जिन्दगी फिर जिन्दगी नाम की रही
देह के जर्रे -जर्रे में अजीब सा सैलाब आया
-सिद्धार्थ गोरखपुरी