मैं
मैं कवि हूँ
कल्पना ही मेरा जीवन
सोचता हूँ
आज हूँ एक
जीर्ण-शीर्ण पीत काग़ज़
ढेर में रद्दी के
गल रहा दिन रात मैं
झेलता बूढ़े बदन पर
धूप की बरसात मैं
मैं कवि हूँ
कल्पना ही मेरा जीवन
सोचता हूँ
कल तलक था
एक प्रेयसी के लिए
एक प्रेमी की रचित
पातियों का रूप मैं
प्रेम की पहली दहकती अग्नि का स्वरूप मैं
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सरफ़राज़ अहमद “आसी”