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16 Jan 2017 · 1 min read

मैं

गुज़रती हूं अंधेरो से
लिये तक़दीर हाथों में
बिखरती हूं सिमटती हूं
लिये उम्मीद ख्वाबों में

दोष किसका है किसके
सर लगे बस वक्त ही जाने
जीतकर धुंध से बाज़ी
सूरज अब निगाहों में

उलझ बस खो गये हैं दो
सिरे जीवन के नादां मन
पकड़ ले इक सिरा यूं ही
तू है रब की पनाहों में

Language: Hindi
2 Likes · 1 Comment · 565 Views
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