मैं ख़ामोश रहता
122 + 122 + 122 + 122
फ़क़त धन कमाता, तो ग़ज़लें न कहता
ये क़िस्से न होते, मैं ख़ामोश रहता
मिरा ये हुनर है, मिरी कामयाबी
अगर बन्ध जाते, न दरिया सा बहता
बना इश्क़ क़ातिल, हुआ आशिक़ाना
न चुपचाप मैं तीर, नज़रों के सहता
अगर जानता मैं भी, जो बेवफ़ाई
महल ना वफ़ाओं का खंडर सा ढहता
हुनर ये अदब ये, करम है उन्हीं का
न सुनता जो दिल की, तो क्या फिर मैं कहता
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