मैं होता डी एम
चारों तरफ बड़ाई होती,खुशी न होती कम।
आरक्षण गर मुझको मिलता मैं होता डी एम।
रुपयों से मेरा घर भर जाता जब मोटा वेतन आता।
कैसे कब धनवान बन गया कोई बता न पाता।
अम्बेसडर नीली बत्ती में दफ्तर रोज धमकता।
जिस पर चाहता रौब गांठता अथवा हड़का सकता।
सिग्नेचर में नखरे करता कलम दिखाती दम।
आरक्षण मुझको मिलता तो मैं होता डी एम।
लगन से किया पढ़ाई लेकिन
अब तक कुछ न कर पाया।
ओबर ऐज का समय आ गया है चेहरा मुरझाया।
बेड़ा गर्क किया आरक्षण किस्मत हो गयी फेल।
एम फिल तलक पढ़ाई फिर भी बेच रहा हूँ तेल।
दिन भर करता धंधा अपना शाम को पीता रम।
आरक्षण गर मुझको मिलता मैं होता डी एम।
कल तक थे जो झुककर मिलते करते रोज हजूरी।
आज वही मुस्करा रहे है,देख मेरी मजबूरी।
रमई, लोधे,अलगू, फत्ते,चालीस अंक पे पास।
लाला,ठाकुर,मिसिर,तेवारी,अस्सी पर भी निराश ।
मुझसे रुस्ट सफलता जबकि मेहनत करते निकला दम।
आरक्षण गर मुझको मिलता मैं होता डी एम।
कोटे वाले पास हो गए बन गए सब अधिकारी,
बिना आरक्षण भटक रहे हैं,लाकर मेरिट भारी।
चारों तरफ है टीना ढाबी,क्योकि आयी फस्ट।
दिल मसोस केअंकित रह गया,उसे हुआ अति कष्ट।
घोर निराशा रोज सताती दुख नहीं होता कम।
आरक्षण गर मुझको मिलता मैं होता डी एम।
अगड़े भी हैं इसी देश के,उनका भी हो ध्यान,
सारी चीज उन्हें भी चाहिए धन पद घर सम्मान।
कोटे से एतराज नहीं पर सबका हो सतत विकास।
लेकिन इतना भी न कर दो टूटे जीवन आश।
योग्य व्यक्ति की कदर करो सुन लीजै मेरे पी एम।
आरक्षण मुझको मिलता तो मैं होता डी एम।
सतीश सृजन, लखनऊ