मैं हूँ
सारे इंतज़ार की जड़ मैं हूँ
हर ज़रूरत की तलब मैं हूँ
गुज़रते हुए लम्हे की एक सोच
दिल मे जो घर कर जाए, मैं हूँ
दो साँसों के बीच को खाली जगह
तुमने अधूरी पढ़कर छोड़ी वो किताब
दूरियों के लिबास में लिपटा हुआ
खालीपन का गहरा एहसास मैं हूँ
मैं दर्द हूँ, दवा भी हूँ मैं
जो तुम अक्सर चाहते मैं वो हूँ
प्यार से ज़्यादा नफरत मिली मुझे
जंग में घायलों की चीखों सा मैं हूँ
संसार के पापों का प्रायश्चित
आसानी से निभाया गया परहेज़
जब कोई ना हो तब भी हूँ मैं
रूहानी सा एक एहसास मैं हूँ
–प्रतीक