मैं हूँ प्रसून
मैं हूँ प्रसून
गुलाब, गेंदा, सूरजमुखी,
मोगरा कहो या कहो चमेली ।
फूल हूँ मैं… रंग रूप हजार
नाम से ही मेरी पहचान ।
लाल गुलाब कहलाता हूँ ।
पीला गेंदा वसंत में लाता हूँ ।
सफेद मोगरा और चमेली
सूरजमुखी आदित्य-सी प्रभा फैलाता हूँ ।
कार्य मेरा एक तरह का
शौर्य, वीरगाथा… चाहे हो पूजा-अर्चना वाला ।
हाँ, मैं हूँ पुष्प, सुमन, प्रसून वही
नाम अनेक अर्थ सिर्फ एक……
फूल हूँ मैं……
सिर्फ फूल हूँ मैं……
खुशी में भी काम मैं आता हूँ ,
और गम में भी प्रयोग किया जाता हूँ ।
रौंद दिया जाता कभी कदमों से
कभी शीर्ष सजाता हूँ ।
मंदिर में रोज़ मैं चढ़ता हूँ ।
शैय्या पर भी मैं बिछता हूँ ।
वंदनवार, विदाई, सगाई
सभी जगह ही दिखता हूँ ।
एक नहीं अनेक कृत्य में
काम में मैं ही आता हूँ ।
फिर भी मानुष जन के पैरों से
कुचला चला जाता हूँ ।
बाग-बगिया में खिलकर में
शोभा उपवन बढ़ाता हूँ ।
पथ पर शूरौं की गिरकर में
अपना मान बढ़ाता हूँ ।
गर्व से गौरवान्वित होता …
जब वीरों पर चढ़ाया जाता हूँ ।
तिरंगे में लिपटकर जब
धरती का श्रृंगार बढ़ाता हूँ ।
आरोहित तिरंगा मुझको
मान सम्मान दिलाता है ।
महक से मेरी इस जीवलोक का
कोना-कोना खिल जाता है ।
रचनाकार – नीरू मोहन