मैं हिमालय हूं
हिमालय की गोद में मधुबन की सुगंध खिले
फूलों की महेक से इन्द्र लोक का आनंद मिले
कहे हिमालय हिमबिन्दु से आवो जो हमें ठंड मिले
समीर के सर सर साया से पुष्पधूति अंग हिले
हिमालय के गोद ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, सुगंध खिले
नील गगन अम्बर झुक जाए
पर्वत जब नर्तक बन जाए
ऋतुपति कहता सुमन पुष्प से
खिलो जो तुम ये पर्वत सुवास हो जाए
हिमालय की गोद ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, सुगंध खिले
नदियां झरना आस लगाए खुले द्वार तो मन भर जाए
आ जाए संसार में प्रलय जो हम एक बार झुक जाएं
मेघ, आलोक, पावस, वारिद झुकते हैं सब राह हमारी
मेरी गोद में घटा निराली देता मैं सब को हरियाली
हिमालय की गोद,,,,,,,,,,,,,,,,,,, सुगंध खिले