मैं हिन्दुस्तान हूँ सरदार के आज़ाद सपनो का
मेरे सीने से निकला है लहूँ अपनो के ज़ख़्मो का ,
महल कब हाल पूँछेगे घिसीं बेकार सड़को का ।
मेरी हालत बनाई है किसी अबला अभागिन सी ,
मैं हिन्दुस्तान हूँ सरदार के आज़ाद सपनो का ।
हिमालय से निकल आये किसी दिन लाडला मेरा ,
मुझे आभास होता है भगत से वीर कदमो का ।
जहाँ देखो वही अब तो इसी कुर्सी के झगड़े हैं ,
सभी मिल क़त्ल कर बैठे रिवाजों और रश्मो का ।
लगी है नाल सीने में चलाता फिर भी है तोपे ,
लहूँ बहता है सरहद पर मेरे दिलदार बच्चो का ।
हरेन्द्र सिंह कुशवाह
~~~एहसास~~~