मैं हिन्दी हूँ , मैं हिन्दी हूँ / (हिन्दी दिवस पर एक गीत)
मैं हिन्दी हूँ , मैं हिन्दी हूँ ।
मै गायक हूँ, सुखदायक हूँ,
मैं जनमन की अधिनायक हूँ ।
मैं राजकाज,जन-जन भाषा,
औ’ वेदों की अनुवादक हूँ ।
जिसके माथे हिमरजत मुकुट
उस भारत माँ की बिन्दी हूँ ।
मैं हिन्दी हूँ , मैं हिन्दी हूँ ।
मेरे आँगन जागे कबीर,
खेले ग़ालिब,मोमिनो मीर ।
पत्ता – पत्ता , डाली – डाली,
फूली, फलती मेरी ही पीर ।
जिसको धारे फिरती मीरा
मैं वो मोहन-सी बिंदी हूँ ।
मैं हिन्दी हूँ , मैं हिन्दी हूँ ।
मैंने विष के जब घूँट पिए,
ममताभर तब रैदास जिए ।
मेरी अँधेरी देहरी पर,
तुलसी के जलते रहे दिए ।
जिसकी लहरें हों प्रेमगीत,
मैं वो श्यामल कालिंदी हूँ ।
मैं हिन्दी हूँ , मैं हिन्दी हूँ ।
बँग्ला में मेरी दिशाएँ हैं,
उर्दू में मेरी क्रियाएँ हैं ।
गुजराती और मराठी में,
दक्षिण में मेरी विमाएँ हैं ।
जिसने वाणी दी है,मैं उस
कारिन्दा की कारिन्दी हूँ ।
मैं हिन्दी हूँ , मैं हिन्दी हूँ ।
पंजाबी में आधार मेरा,
उड़िया में है व्यवहार मेरा ।
मैं तमिल,तेलुगू,मलयालम,
कन्नड़ में है साकार मेरा ।
जिसके तट हुए आक्रमण,मैं
उस सिंधु नदी-सी सिंधी हूँ ।
मैं हिन्दी हूँ , मैं हिन्दी हूँ ।
दी “भारतेंदु” ने मुझे धूप,
बरसा ‘द्विवेदी- युग’ अनूप ।
दी “प्रेमचंद” ने शीतलता,
औ’ ‘प्रगतिवाद’ है उष्णरूप ।
हूँ कथा-व्यथा मैं वीरों की,
मैं “गद्य-पद्य” बाशिन्दी हूँ ।
मैं हिन्दी हूँ , मैं हिन्दी हूँ ।
मेरी आँखें हैं “सूरदास”,
मै “माखन दा” की मिसरी हूँ ।
मेरे कोटर में “सियाराम”,
मैं “मुक्तिबोध” में निखरी हूँ ।
बसते हैं प्राण “निराला” में,
मैं “पंत” ग्राम्य-कालिन्दी हूँ ।
मैं हिन्दी हूँ , मैं हिन्दी हूँ ।
मैं हूँ “जायस” की नागमती,
हूँ भक्ति-धार “रसख़ानों” की ।
मैं हूँ “गणेश” सी पत्रकार,
औ’ थीसिस हूँ विज्ञानों की ।
हूँ ‘व्यास-पीठ’ का संचालन,
फिर भी ‘रिन्दों’ की ‘रिन्दी’ हूँ ।
मैं हिन्दी हूँ , मैं हिन्दी हूँ ।
बृज में मेरा लालित्य भरा,
अवधी में है चारित्र्य भरा ।
मैथिली , मालवी बोली में,
मेरा ही सुंदर कृत्य भरा ।
मैं मधुर निमाड़ी-सी अल्हड़,
अलबेली – सी बुन्देली हूँ ।
मैं हिन्दी हूँ , मैं हिन्दी हूँ ।
कवियों ने मुझे दुलारा है,
लेखक की सखी-सहेली हूँ ।
हूँ “घाघ-भट्ट” की कहावतें,
“ख़ुसरो” की अमर पहेली हूँ ।
यद्यपि मेरा परिवार बड़ा,
फिर भी मैं बहुत अकेली हूँ ।
मैं हिन्दी हूँ , मैं हिन्दी हूँ ।
मेरे जीवन में “राम” रमे,
मैं हूँ “मोहन” के गोरस-सी ।
मेरे गुरुत्व में बसे “बुद्ध”,
मैं परम सिद्ध हूँ “गोरख”सी ।
मैं “महावीर” की जिनवाणी,
मैं संत – हृदय बाशिन्दी हूँ ।
मैं हिन्दी हूँ , मैं हिन्दी हूँ ।
मैं गर्मी में , बरसातों में,
मै भजन – उनींदी – रातों में ।
मैं उजियारा हूँ “दिनकर” का,
मैं “वाजपेयी” की बातों में ।
मैं लाभ-हानि बाजारों की,
मैं तेजी हूँ औ’ मन्दी हूँ ।
मैं हिन्दी हूँ , मैं हिन्दी हूँ ।
मैं बरसाने की अमर प्रीत,
औ’ रीतिकाल की सुगर रीत ।
मैं मधुर कंठ हूँ “नीरज” का,
मैं हूँ “कुमार” का मधुर गीत ।
‘आपातकाल’ की हूँ पीड़ा,
मैं “मीसा” की पाबन्दी हूँ ।
मैं हिन्दी हूँ , मैं हिन्दी हूँ ।
मेरी गंगा सम्मान भरी,
मेरी गागर है ज्ञान भरी ।
मेरे सागर में मिलने को,
आतुर सरिता विज्ञान भरी ।
है चादर धवल संस्कृत की,
उससे निकली मैं चिंदी हूँ ।
मैं हिन्दी हूँ , मैं हिन्दी हूँ ।
०००
— ईश्वर दयाल गोस्वामी ।