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25 Sep 2019 · 1 min read

” मैं हार नहीं मानूँगी ” !!

मैं हार नहीं मांनूगी !!

गिद्ध दृष्टि देखी है ,
बचपन से पचपन तक !
आँखें भेद रही हैं ,
अंदर तक , चिलमन तक !
ना हारी हूँ , हारूँगी ,
अब रार यहीं ठानूँगी !!

कुछ कच्ची सी कलियाँ ,
खिल ही ना पाई हैं !
शैतानी पंजों से ,
बच ही ना पाई हैं !
कुछ भूले , भटकों सी ,
मैं खाक नहीं छानूंगी !!

खुद को ढाला ऐसा ,
अगन नहीं , ज्वाला हूँ !
कभी हलाहल हूँ तो ,
कभी सुधा प्याला हूँ !
अबला ना , सबला हूँ ,
मैं शमसीरें तानूँगी !!

स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )

Language: Hindi
Tag: गीत
3 Likes · 256 Views
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