मैं हाथ मिलाऊँगा गले नहीं लगाऊंगा
तुम क्या जानो मैं कितने दफे बचा हूं डूबने से
प्यासा मर जाऊंगा पर दरिया के पास नहीं जाऊंगा,
लहरों का क्या भरोसा कब वादाखिलाफी कर दें
भीग जाऊँगा मैं साहिल पर घर नहीं बनाऊंगा,
कौन जाने सुबह का भूला कब लौट आए
मैं चौखट का चिराग नहीं बुझाऊंगा,
मैं सच कहूंगा और तेरा दिल दुखेगा
झूठ बोल कर तुझे अपना नहीं बनाऊंगा,
तुझे भी तो पता चले मेरे गम-ए-कारोबार का
हाथ मिलाऊँगा मैं गले नहीं लगाऊंगा,
संदीप अलबेला