मैं सोचता हूँ…
मैं सोचता हूँ…
शहर की हर दीवार पे
‘भगत’… तुम्हें उकेर दूँ
फिर सोचती हूँ…
तुम्हारी सोच को,
हर स्कूल के आंगन में ही क्यूं न बिखेर दूँ
फिर, मैं सोचती हूँ…
सोचने वाली हर सोच को
तुम्हारा ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ’ का
ध्रवतारा उधार दूँ
मैं सोचती हूँ…
मैं ये सब क्या और क्यूँ सोचता हूँ…
क्या मैं गलत सोचती हूं…???
…सिद्धार्थ