मैं समुन्द्र हूं
मैं समुन्द्र हूं :
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कितना कुछ आता है
सब मुझमें समाता है
मेरे अन्तर में मिल
खारा पानी बन जाता है
दुनिया की सभी नदियां
नाले गटर और तलैया
मुझमें आ बसते है
पहचान खुद की खोतें है
अंक में स्वीकारूं सभी को मैं
अंगसार करूं प्यार बरसाऊं
पर मेरी भी सीमा रेखा है
मेरे अन्दर भी जीवन है
गन्दगी अब ना सह पाऊंगा
सुनामी बन तबाही मचाऊंगा
जिम्मेदार तुम सब हो
गन्दगी मुझमें डालते हो
प्लास्टिक भी खिलाते हो
बडे़ बडे़ पुल बना
हर पल मुझे रौंदते हो
विशाल जहाजों से छलनी मेरी छाती
कितना और सह पायेगी
एक ना एक दिन तुम्हे
सजा मिल ही जायेगी
जब फैक्टरी मोड़ पर
दुनिया पुन: रीसेट हो जायेगी!!!
– नमिता दुबे