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15 May 2024 · 1 min read

मैं संपूर्णा हूं

रचना नम्बर (23)
आत्म मंथन

मैं सम्पूर्णा हूँ

सृष्टि का शिलान्यास हूँ मैं
सन्मार्ग हूँ पूर्ण सृजन का
इकमात्र धुरी परिवार की
जीवन-चक्र चलाने वाली

ठोकरें खाती रही मैं सतत
शालिग्राम स्वरूप मैं बनी
हार बनी मैं हर ग्रीवा का
मुझे हार है पग-पग मिली

किश्त-किश्त में मिला है
हक़दार थी इक मुश्त की
दहलीज़ की हदों में रही
दर-दर की भटकन मिली

ग़र तुम प्रथम मनु थे बने
आदि श्रद्धा मैं भी तो थी
परछाइयाँ बिखरी हैं मेरी
कतार शुरू होती मुझीसे

बुन रहे फ़क़त ताने-बाने
स्वप्नदृष्टा तो बस मैं ही हूँ
कृतियाँ संसारी अद्भुत हैं
पर कलाकार मैं ही तो हूँ

तिनका-तिनका चुनकर
मकान को घर है बनाया
स्नेह की रेशमी डोर बुन
बांधे रखा रिश्ते-नातों को

हाँ आगाज़ तुमने किया
लेकिन जिंदगी के सपने
साकार तो मैंने ही किए
स्वयं छाया व आधार मैं

सरला मेहता
इंदौर
मौलिक

1 Like · 66 Views

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