मैं श्रृंगार न लिख पाऊँगी
मैं श्रृंगार न लिख पाऊँगी
मैं श्रृंगार न लिख पाऊँगी,
प्रिय मेरा पथ कंटक है,
पथरीला भी भयंकर है,
उर में तेरे गुंजित होने,
मैं झंकार न लिख पाऊँगी,
मुझको हर पल चलना है,
गिरना और सम्भलना है,
तेरे संग पहरों मैं बैठूँ ,
ये अरदास न लिख पाऊँगी,
मुझे पुकारे करुण कहानी,
जगती के नयनों का पानी,
तेरे प्रेमातुर लोचन को,
मैं संसार न लिख पाऊँगी,
जर्जर होती निशदिन काया,
प्रभु ने ऐसा चक्र बनाया,
इस जीवन का सार समझके,
मुक्ताहार न लिख पाऊँगी।
वर्षा श्रीवास्तव”अनीद्या”