मैं शिव का नंदी, तू सवार सा है
मैं ख्वाब सा हूं
तू बहार सा है।
मैं स्वप्न सा हूं
तू साकार सा है।
मैं चाहत सा हूं
तू इजहार सा है।
मैं ठहराव सा हूं
तू इंतजार सा है।
मैं खामोशी हूं
तू पुकार सा है।
मैं अकेला हूं
तू विस्तार सा है।
मैं सूनापन हूं
तू बाजार सा है।
मैं शौक सा हूं
तू प्यार सा है।
मैं थका सा हूं
तू बेकरार सा है।
मैं बंधा सा हूं
तू बेतार सा है।
मैं गीली रेती,
तू बयार सा है।
मैं कश्मीर हूं
तू चिनार सा है।
मैं बगीचा हूं
तू बहार सा है।
मैं सूना आंगन,
तू कचनार सा है।
मैं दुल्हन हूं,
तू श्रृंगार सा है।
मैं सौन्दर्य हूं,
तू निखार सा है।
मैं स्वर सा हूं
तू सितार सा है।
मैं शुरुआत हूं
तू मयार सा है।
मैं चींटी सा हूं
तू कतार सा है।
मैं तिरस्कृत,
तू स्वीकार सा है।
मैं कुम्हार सा हूं,
तू स्वर्णकार सा है।
मैं धुंधला सा हूं
तू निहार सा है।
मैं बुराई सा हूं
तू प्रहार सा है।
मैं क्षणिक हूं
तू लगातार सा है।
मैं खुदगर्ज हूं
तू निसार सा है।
मैं किश्ती सा हूं
तू पतवार सा है।
मैं बिखरा सा हूं
तू दीवार सा है।
मैं अस्त व्यस्त,
तू मीनार सा है।
मैं अनिश्चित हूं
तू करार सा है।
मैं ठहरा पानी,
तू धार सा है।
मैं ठंडी राख,
तू अंगार सा है।
मैं इस पार हूं
तू उस पार सा है।
मैं शून्य शून्य,
तू हजार सा है।
मैं थोड़ा थोड़ा,
तू अपार सा है।
मैं संसार सा हूं
तू भवसार सा है।
मैं शिव का नंदी,
तू सवार सा है।
मेरे अंधेरेपन को चीरता,
तू रौशन तलवार सा है।
-✍श्रीधर.