मैं शिक्षिका हूँ
मुझे केवल शिक्षिका, न समझा जाए,
विस्तार रूप में हूँ, मुझको समझा जाए,
विशाल रूप में हूँ,और व्यापक जाना जाए
मैं एक शिक्षिका हूँ,मुझे भी समझा जाए।
काले पटल पर उकेरती हूं, मैं अपने भावों को,
रोक लेती मैं हूँ, मन मे उमड़े भावों को,
बालपन जी रहे नोनिहलो का,मैं ही रक्षक हूँ
मैं एक शिक्षिका हूँ,मुझे भी समझा जाए।
वकील डॉक्टर को ,बनाया करती हूँ
चुनाव का समापन भी भली भांति करती हूँ
सोचो तो देश-भारत की व्यवस्था करती हूँ
मैं एक शिक्षिका हूँ,मुझे भी समझा जाए।
कितने ही काम करती नित, लिपिक सी हूँ मैं,
हर ननिहाल का हिसाब रख, परवरिश करती हूँ मैं,
बहुत से क्षेत्रो में भी, में व्यवस्थापिका हूँ मैं
मैं एक शिशिक हूँ,मुझे भी समझा जाए।
सभी को लिखना सिखाती हूँ, मैं लेखिका भी हूँ
स्वयं करके देखती हूँ, मैं मूर्तिकार भी हूँ,
लेखनी भी चलती हैं ‘मैं कविता भी लिख लेती हूँ।
मैं एक शिक्षिका हूँ,मुझे भी समझा जाए।
डॉ मंजु सैनी