“मैं शिक्षक हूँ “(गज़ल/गीतिका)
“मैं शिक्षक हूँ”(गज़ल/गीतिका)
शिक्षक हूँ मैं मैं शिक्षा की अलख जगाता हूँ
जीवन को जीने की मैं बुनियाद बनाता हूँ।
बेमेल सुरों को सजा मैं साज़ बनाता हूँ
नादान परिंदों को सिखा मैं बाज़ बनाता हूँ।
समंदर परखता हैं यहाँ होसलें कश्तियों के
मैं तो डुबती कश्तियों को जहाज बनाता हूँ।
लाख बनायें कोई यहाँ पर संगमरमरी अट्टालिका
मैं तो कच्ची ईटों से यहाँ ताज़ बनाता हूँ।
जीते सभी हैं इस जीवन को अपने सलीकों से
मैं तो बदस्तूर जीने का अंदाज बनाता हूँ।
सुनता हूँ मैं बड़ी अदब से सबकी शिकायतें
तब मैं दुनिया बदलने की आवाज़ बनाता हूँ।
लाख लिखे कोई यहाँ पर गीत गज़ल गीतिका
मैं तो बस वर्णो को मिला अल्फ़ाज़ बनाता हूं।
लाख बनायें कोई यहाँ पर हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
मैं तो बस सबको यहाँ इंसान बनाता हूँ।
रामप्रसाद लिल्हारे “मीना “