मैं शब्द हूँ !
मैं शब्द हूँ
मुझे हर बार
दफ़नाने की साज़िश होती है
जब मैं चुभ जाता हूँ, भीतर तक
फिर मैं बीज बन दबाया जाता हूँ
समय के मिट्टी में, अंदर तक
फिर कोई सहलाता है
उस सख्त मिट्टी को
पानी से सींचता है
मैं निकल आता हूँ, अंकुर बन
लहलहाता हूँ, किसी और पन्ने पर
किसी और तूलिका पर चढ़ कर
अपने पुराने रूप में लौट आता हूँ
मैं शब्द हूँ, कभी-कभी
चुभ जाता हूँ
…सिद्धार्थ