मैं शब्दों का जुगाड़ हूं
कविता के ताल से निकली तु शब्दों का जाल है।
कविता की गहराई में छिपी तु भावो का माया जाल है।
तेरे सहारे मैं सदा अपने भावो को पिरोता हूँ
अपने पन के दाव से खुली किताब का 2 तुम तो खामोशी का खामोश हो पान हो’
* तुम्हे पढने खातिर मा समय की ना जगह की पाबन्दी है।
जहां कक मैं तेरा गुणगान तुम वही गणगौर घटा ती खिल जाती हो
मोतियों के हार की तुम वो पक्का धागा हो, जिसके दम पर तुम्ही को हमे रिश्तो की गाठ समझाती हो
पल तो पल का यह सफर थाम कलम ले गया यह जफर