मैं वो नदिया नहीं हूँ
बहुत दूर तक तो चले तेरे पीछे
पलटकर ही न देखा कभी एक नजर भी
तो थक हारकर हम रुक ही गए अब
तुझे शायद मेरी जरूरत नहीं है।
मेरे कदमों की आहट न पाओगे जब तुम
मुड़कर फिर देखोगे तो मैं न मिलूंगी
कदम जो अकेले ही हैं आगे नापे
वहाँ से जो लौटोगे खड़ी मैं मिलूंगी।
तुझे चाहने की हर इक हद तक चाहा
मगर तुम मेरे हो सके न कभी भी
समेंटे है दामन में आरोपों के काँटे
करके न्यौछावर मेरी जिन्दगी भी
मुझमें इससे बेहतर नहीं और है कुछ
जो उत्कृष्ट था वो समर्पित किया है
स्वीकारता है हृदय मेरा अब ये
जो तुम्हें तृप्ति दे मैं वो नदिया नहीं हूँ।
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