मैं विरोध में खड़ी हूँ
मैं तहे दिल से हर एक बलात्कारी के विरोध में खड़ी हूँ।
जब कोई नालायक, कुलांगार बेटा, शक्तिहीन हो चले,
बूढ़े पिता -माता को-
शारीरिक, मानसिक यातनाएं देता है तो,
मां के दुलार का, पिता के भरोसे का बलात्कार ही करता है,
जब कोई भाई अपनी बहन के अधिकारों और उसकी खुशहाली को- स्वार्थ और घमंड से,
रौंदकर, कुचल कर ख़ुश हो कर हंसता है तो –
राखी में बंधे हुए बहन के विश्वास का-
बलात्कार ही करता है,
जब कोई शिक्षक और शिष्य एक दूजे का,
जब कोई अफ़सर और मातहत एक दूजे का, जब कोई पत्नी और पति एक दूजे का, जब कोई नेता कहीं आम जनता का,
किसी भी तरह शोषण कर लेता है तो-
धरती पर रिश्तों का, मानवीय संवेदना का –
बलात्कार ही करता है,
मैं तहे दिल से ऐसे बलात्कारियों के,
सख्त और सख्त विरोध में खड़ी हूँ।