मैं विचार हूँ,
मैं शरीर नहीं,
विचार हूँ,
एक नहीं हजार हूँ,
बाँधा है जिसको तूने,
मैं जकड़ा नहीं आजाद हूँ,
खुला हूँ,
मैं आवाद हूँ..!
जिश्म है,
मिट्टी, धूल, राख है,
वही तेरे साथ है,
मग़र में विचार हूँ,
आज हूँ, कल था, कल हूँ,
और हमेशा हरबार हूँ,
मैं ही प्रकाश,
मैं ही अंधकार हूँ,
तेरे चेहरे की चमक
और तेरे लबों की धार हूँ,
मैं विचार हूँ…
चलता नहीं,
दौड़ता नहीं,
हर जगह साकार हूँ,
दिखता नहीं,
मिलता नहीं,
मैं निराकार हूँ
स्पंदित नाड़ी की तान हूँ,
मैं विचार हूँ….
मैं प्रश्न हूँ,
जबाब हूँ,
मैं क्रूर हूँ,
मैं प्रेम हूँ,
मैं शस्त्र हूँ,
मैं शास्त्र हूँ,
मैं ही ब्रह्मास्त्र हूँ
मैं ही संतापों का पात्र हूँ
मैं विचार हूँ…
मैं तू हूँ,
मैं मैं हूँ,
मैं ये हूँ,
मैं वो हूँ,
मैं नदी, पर्वत चट्टान हूँ,
मैं जिंदा हूँ,
मैं मुर्दा हूँ,
मैं आकाश, पाताल, महाकाल हूँ,
मैं विचार हूँ…
तेरी मुस्कान हूँ,
भीगी पलकें हूँ,
अंगाड़ियों की टूटी आह हूँ,
हर उद्देश्य की मैं चाह हूँ,
दिन रात की मैं बात हूँ,
प्रेमियों का गान हूँ,
युद्ध का पैगाम हूँ,
वसुंधरा की गात हूँ,
काम का जज्बात हूँ..
मैं ही धर्म,
मैं ही जाति,
मैं ही परमेश्वर की थाती हूँ,
मैं ही अपराध,
मैं ही अन्याय,
मैं ही निअप्राध
न्याय हूँ..
मैं ही सुंदर,
मैं ही कुरूप,
मैं ही स्त्री-पुरुष जीव इंसान हूँ
मैं ही पपीहा की प्यास,
मैं ही कोयल की कुहू,
मैं ही शेर की दहाड़ हूँ,
चीत्कार हूँ,
मैं शीतल वयार हूँ….
मैं ही विधवा,
मैं ही सधवा,
मैं ही विदुर,
मैं ही प्रेमी कान्हा,
पैगम्बर श्री राम हूँ,
मैं ही नानक,
मैं ही जीसस,
मैं ही बुद्ध
महावीर घनस्याम हूँ,
मैं विचार हूँ…
मैं विचार हूँ,
जिश्म से आजाद हूँ,
तेरी बंदिशों से शून्य हूँ,
ब्रह्माण्ड का आधार हूँ,
मैं विचार हूँ…..
प्रशांत सोलंकी