“मैं वही आकाश हूँ”
आह्वान हूँ मैं कर्म का, मैं धर्म का आगाज हूँ
हैं अनन्त ऊचाँई जिसकी, मैं वही आकाश हूँ।
घोट दी आवाज मेरी, दौर वो कोई ओर था।
आजमाने मैं चली हूँ, उनमें कितना जोर था।
रौंद कर अरमान मेरे जो सदा चलते रहें,
मैं बता दूँ अब उन्हें, अबला नहीं अंगार हूँ।
हैं अनन्त ऊचाँई जिसकी, मैं वही आकाश हूँ।
सृष्टि का निर्माण हूँ मैं, सृष्टि का श्रृंगार हूँ।
खून से लथपथ रही जो, मैं वही तलवार हूँ।
है अगर सन्देह तुम्हें आ आजमाले अब मुझें,
याचना नहीं कोई अब मै, जंग की ललकार हूँ।
हैं अनन्त ऊचाँई जिसकी, मैं वही आकाश हूँ।
मौन थी अब तक मगर, खमोशी मैने तोड दी ।
बन्धनों में मै बन्धी थी, पर नहीं कमजोर थी।
इतिहास के पन्नों में मेरी वीरता विद्यमान है,
युग बदलने आई हूँ, नये युग का मैं अवतार हूँ।
हैं अनन्त ऊचाँई जिसकी, मैं वही आकाश हूँ।
सम्पूर्ण नारीजाति को समर्पित
अखिलेश कुमार
देहरादून (उत्तराखण्ड)