मैं लिखूं अपनी विरह वेदना।
मैं लिखूं अपनी विरह वेदना,
या तुम्हारी राह देखना।
बतलाऊँ वह अनंत प्रतीक्षा,
या बिन तुम्हारे शामों का ढलना।
सुनाऊं तुम्हें अपने मन का विलाप,
या दिखाऊं अपनी आंखों का झरना।
गिनाउं तुम्हें वह अनगिनत पल,
जो था तुम्हें अपनी बातों से भरना।
कैसे समझाऊं वह खालीपन,
जो तुम्हें चाहिए था भरना।
कैसे मिटाऊं वो अकेलापन,
जो चाहता था तुम्हारे साथ रहना।
सोचा था बिन कहे समझ जाओगे,
फिर भी मुझे पड़ रहा है कहना।
मैं लिखूं अपनी विरह वेदना,
या तुम्हारी राह देखना।
लक्ष्मी वर्मा ‘प्रतीक्षा’
खरियार रोड़ _ ओड़िशा