मैं लहर तुम समंदर हो
मैं लहर तुम समंदर हो
तुमसे उठती हूं, तुम में ही समा जाती हूं,
मैं तेरा गीत गुनगुनाती हूं
नाचती गाती हूं, मैं तेरी उमंगे हूं
सागर ए दिल की मैं तरंगे हूं
मैं लहर तुम किनारे हो,
तुमसे मिलने बेताब चली जाती हूं
तेरे दर पर अपनी, हस्ती को मिटा जाती हूं
चूम कर तुमको साहिल, सागर में समा जाती हूं
तुमसे मिलने को मन मचलता है
सप्त रागौं पर दिल धड़कता है
मैं बड़ी दूर से मिलने को चली आती हूं
तुम मेरी सब्र का इंतिहान ना लो
गर जोश में आ गई साहिल
तूफान मचा देती हूं
तेरे दर पर अपनी हस्ती को मिटा देती हूं
सुरेश कुमार चतुर्वेदी