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5 Dec 2017 · 2 min read

मैं रिश्ते निभाने के लिए अक्सर झुक जाती हूं

सब कुछ समझती हूं..कहा अनकहा सब कुछ..मैं बिन कहे सब कुछ महसूस कर जाती हूं..
कुछ कहने की ज़रूरत नहीं..
मैं अपनों के चेहरे में दुख सुख पढ़ लेती हूं..

मैं और कुछ नही…
बस प्यारे से रिश्तो का एहसास चाहती हूं
ना कोई रूठे मुझसे..ना कोई नज़रअन्दाज़ करे
मैं हर तरफ़ बस खुशी बाँटना चाहती हूं
बस रिश्तो को निभाने के लिये अक्सर झुक जाती हूं

सच्चे रिश्तो में न कोई स्वार्थ भावना..ना कोई बंधन है
ना ही मिलना ज़रूरी..बस दिलों का गठबंधन है
निस्वार्थ प्रेम है..अटूट विश्वास है
दूर हों या पास मैं
बस प्यारे से रिश्तो का एहसास चाहती हूं

सब कुछ समझती हूं..कहा अनकहा सब कुछ
मैं बिन कुछ कहे सब कुछ महसूस कर जाती हूं
कुछ कहने की ज़रूरत नहीं
मैं तस्वीरों में भी इशारे समझ लेती हूं
मैं चुप्पी के अर्थ भी समझ जाती हूं

त्याग समर्पण हो मर्यादित ये जीवन
दिलों में हो सबके निर्मल प्रेम भावना
न ही दिल में कोई है कामना
नहीं मन में है कोई छल कपट
मैं दिलों के हर ज़ज़्बात समझ लेती हूं
मैं आँखों में मन की पीड़ा पढ़ जाती हूं

करो न उपेक्षित यूं हर पल एक दूजे को
कट रहा ये जीवन हर क्षण
मैं रिश्ते निभाने के लिये थोड़ा झुक जाती हूं
नहीं ज़रूरत नज़रअन्दाज़ी की
मैं संसकारों की भाषा समझ लेती हूं
सब कुछ समझती हूं
कहा अनकहा सब कुछ
मैं अपनो के ज़ज़्बात बखूबी समझ जाती हूं
कुछ कहने की ज़रूरत नहीं
मैं बातों में बातें समझ जाती हूं

बस सच्चे रिश्तो का एहसास चाहती हूं
हर तरफ़ खुशी बांटना चाहती हूं
मैं इसलिए निभाने के लिये अक्सर झुक जाती हूं
©® अनुजा कौशिक

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 1302 Views
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