मैं राम हूँ
मैं राम हूँ
हाँ मैं राम हूँ।
सीता का राम
कौशल्या का राम
दशरथ का राम
शबरी का राम
हनुमान का राम
आपका अपना
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम
हाँ भगवान हूँ।
सबल हूँ।
सक्षम हूँ।
योग्य हूँ।
कुशल हूँ।
फिर भी मेरा जीवन…
मेरी पत्नी
मेरा भाई
और स्वयं मुझे
पड़ा छोड़ना घर
हुए बेघर
जंगल ही बसेरा
जानवरों में डेरा।
शत्रु बना संसार
असुर हज़ार।
चोरी होती होंगी तुम्हारी तो बस वस्तुएँ
मेरी तो पत्नी…
और हाँ मैं भगवान हूँ।
मेरे साथ ऐसा क्यों ?
था आधिग्रस्त मैं भी।
क्या थी मेरी गलती ?
ईमानदारी
सदाचार
सत्य-व्यवहार
वचन-पालन
पितृ-प्रेम…
फिर भी क्यों ?…
… और सत्य-संग्राम में
विरुद्ध दैत्यों के
समझदार प्राणी मनुष्य तो साथ ही न था मेरे
… सरल हृदय भालू-वानर बस साथ।
इतने पर भी विधि को संतोष कहाँ ?
पत्नी की परीक्षा…
अग्नि-परीक्षा।
किसे दे पाया मैं सुख ?
न पिता को
न माता को
न भाई को
न पत्नी को
हाँ प्रजा को मिला ‘राम-राज्य’
किंतु
फिर दोषारोपण वहीं से।
मुझ पर भी उठी उंगली…
जब थी ज़रूरत मेरी जानकी को
तब मैं था ही नहीं उसके पास।
बच्चे भी हुए जंगल में
गोद तक में ले न पाया शिशु को।
और याद दिला दूँ…
मैं भगवान हूँ..
मै राम हूँ।
जब मेरे साथ इतना कुछ..
तो तुम तो मानव हो…
और यही जीवन है।
हर समय
तैयार खड़ी है
एक नई चुनौती..
करो स्वीकार
तुम भी रहो तैयार
मत मानो हार
भले ही तुम कर्मराही हो
परंतु
विपरीत परिणाम भी होंगे मेरे यार
चरैवेति-चरैवेति
यही जीवन-सार।
— घनश्याम शर्मा