मैं राग भरा मधु का बादल
मैं राग भरा मधु का बादल
देता दुनिया को संस्पन्दन
पा रहा अहर्निश अभिनन्दन
मेरे अवनी पर आने की
हैं बाट जोहते मन-मरुथल
संगीत -सिक्त मेरा गर्जन
सुन पुलकित उपवन-उर-आनन
मम नव्य नाद सुन प्रमन प्रकृति
मुझसे मिलने को देती चलचल
अवनी आलिंगन को अधीर
हो उठती, उठती हृदय-पीर
पग प्रगति-पंथ पर पड़ते ही
फहराता उसका मलयांचल
उत्तुंग शिखर पर धुवांधार
चुम्बन बरसाता बार-बार
सागर-सीमा से सतत दूर
हंसता हिमाद्रि हिय से अविकल
सस्मित भू का कोना-कोना
पूछता- हमारे ही हो ना?
मैं पंचामृत बन जाता हूं
पा दूध-दही-घृत-गंगाजल
_____ महेश चन्द्र त्रिपाठी