मैं यमराज हू्ँ
मैं यमराज हू्ँ
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देर रात तक पढ़ने के कारण बिस्तर पर लेटते ही नींद आ गई।पढ़ाई के लिए मैनें शहर में एक कमरा किराए पर ले रखा था।मकान मालिक ,उनकी पत्नी और मैं कुल जमा तीन प्राणी ही उस मकान में थे।मकान मालिक पापा के परिचित थे,इसलिए मुझे रहने को कमरा दे दिया वरना इतना बड़ा मकान और रहने को मात्र दो प्राणी, मगर शायद किसी अनहोनी के डर से किसी को किराए पर रखने के बारे में नहीं सोचते रहे होंगे।खैर………।
मैं कब बिस्तर पर आया और कब सो गया ,कुछ पता ही न चला।तभी किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी।मुझे लग भी रहा था पर मुझे लगा कि शायद ये मेरा भ्रम है।लेकिन जब रूक रूक कर लगातार दस्तक होती रही तो न चाहते हुए भी मै उठा और दरवाजा खोला तो सामने जिस व्यक्ति को देखा ,उसे मैं जानता नहीं था।
मैनें उससे पूछा कि आप कौन है?
उसनें शालीनता से कहा -मैं यमराज हूँ।
मैं थोड़ा खीझ गया, अरे भाई !तुम यमराज हो या देवराज इस तरह रात के अँधेरे में आने का मतलब क्या है?
यार!बड़े बेरूखे इंसान हो।मेहमान दरवाजे पर खड़ा हैऔर तुम हो सामाजिकता भी नहीं निभाना चाहते।
चलो यार! अंदर आओ।खाम्खाह मेरी नींद खराब कर रहे हो।
अंदर आकर दरवाजा बंद करते हुए कथित यमराज ने कहा-माफ करना भाई।फिलहाल तो मुझे एक कप चाय पिलाओ,जिससे मेरी नींद गायब रहे।
मैं विस्मय से उसे देखने लगा।
लेकिन श्रीमान आप हैं कौन ?
बताया तो यार! मैं यमराज हूँ।
चलो माना कि तुम यमराज हो।लेकिन मुझसे तुम्हारा क्या काम है?मैनें पूछा
काम कुछ नहीं है ,बस केवल तुम्हारे मकान मालिक को लेने आया था,मगर अभी उसका थोड़ा समय बचा है तो सोचा तब तक तुम्हारी चाय ही पी लूँ।नींद भी नहीं आयेगी और मेरा समय भी कट जायेगा।
लेकिन इतनी रात में आने का क्या मतलब है?दिन में ही आ जाते।कम से कम मेरी नींद तो न खराब होती।
यमराज थोड़ा गम्भीर हुआ!मैं लोगों के प्राण ले जाने वाला यमराज हूँ।जब जिसका समय होता है उसी समय लेने आना पड़ता है।मृत्यु दिन रात नहीं देखती।मृत्यु का समय निश्चित है,बस इंसान जान नहीं पाता।
मैं भी थोड़ा मजे लेने के मूड में आ गया।
तो कम से कम उनको फोन ही कर देते।
कम से कम बेचारे तैयारी तो कर लेते।
हम फोन का प्रयोग नहीं करते।न ही हमारे यहाँ मरने वाले को सूचित करने की कोई व्यवस्था है।मेरा काम है जिसका समय पूरा हो,उसके प्राण ले जाना बस ।
चलो मान लिया लेकिन कुछ भाईचारा मानवता भी होता है।
ये सब यहीं चलता होगा।अब मैं चलता हू्ँ, उसका समय पूरा हो गया।
अरे अरे सुनो तो मेरा मोबाइल नंबर ले लो और मेरे समय से मुझे फोन करके ही आना।
लेकिन वो जा चुका था और मुझे मकान मालकिन के रोने की आवाज साफ सुनाई दे रही थी।
तब तक मेरी नींद खुल गई।कमरे में कोई नहीं था।
मैं सोचने लगा आखिर यमराज गया कैसे?दरवाजा तो अंदर से ही बंदहै।
मैनें सिर झटका और आगे बढ़कर दरवाजा खोला तो बाहर चमक धूप स्वागत कर रही थी।मकान मालिक बरामदे में बैठे रोज की तरह अखबार पढ़ रहे थे।
मैंने अपने दिमाग पर जोर डाला।तब मुझे लगा कि शायद मैं सपना देख रहा था।
✈सुधीर श्रीवास्तव