मैं! मैं! ‘मैं’ ही हूंँ…..।
मैं ही ‘मैं’ हूंँ !
मैं ही ‘मैं’ तू रटता फिरता है,
‘मैं’ ही हूंँ यह कहता रहता है,
‘मैं’ में तू ‘मय’ को रखता है,
मैयत में ‘मैं’ नहीं दिखता है,
‘मैं’ की बोली लगती गोली,
इंसानों में ‘मैं’ की टोली,
तुम में ‘मैं’ है,
‘मैं’ की भाषा,
‘मैं’ न तेरा है,
‘मैं’ न मेरा,
‘मैं’ में कुछ भी नहीं दिखता है,
‘मैं’ में रिश्ते नहीं निभते हैं,
काया तेरी ‘मैं’ की नहीं,
‘मैं’ बिल्कुल भी सच्चा नहीं,
‘मैं’ तो एक दिन टूट जाता है,
मैं! मैं! मत करना तुम,
एक दिन ‘मैं’ में सब छूट जाता है ।
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#बुद्ध प्रकाश; मौदहा ,हमीरपुर ।