मैं मुस्लिम वो हिन्दू ।
मैं मुस्लिम वो हिन्दू है
तो भला क्या बात है
इन सब के बीच मे आख़िर
आता क्यों जात-पात है
वो मुझमें मैं उसमें हु
इक दूसरे के ख्यालों में
हर जगह तुम्हें ही ढूंढू
मेरे सारे सवालों में ।
मेरी वो मैं उसका हु
कई दिनों की बात है
दिन तो अब ढ़लता नही
होती भी नही अब रात है ।
मैं मिलु उसे वो मिले मुझे
ये इक हमारी चाहत है
तुमसे मिलना मानों जैसे
सदियों कि राहत है ।
-हसीब अनवर