मैं माँ हूँ
मैं माँ हूँ
मैं माँ हूँ
माँ का दर्द समझती हूँ
कब मुस्कुराती कब रोती
हर पीड़ा समझती हूँ
आज जो बेटी है
कल उसको माँ बनना है
अकाट्य सत्य वो जानती है
जो सीखा माँ से उसने
कैसे आगे बढ़ाना है
सौम्यता की पहचान
सरलता की मूर्ति माँ है
वह जगति जननि
हर पुरूष की आन है
कोशिश हो पुरूष वर्ग की
जिसको माँ कहते हो
मान भंग उसका न होने पाये
यहीं सीख तुझे माँ शक्ति
आज दुआ में देती है
माँ की आँखों में आया
यदि एक आँसू भी
तो समझ लो पतन अब
दूर नहीं निश्चय ही जान लो