मैं मजदूर
मेरी व्यथा का, कैसे करूँ बखान ।
साहिब ,मैं मजदूर हूँ बड़ा परेशान ।।
मेहनत पसीना बहाकर, भरता हूँ पेट ।
स्वीकार करता हूँ, जो मिले आपसे भेंट ।।
गढ़ गढ़ कर बनाता हूँ ,महल बड़े बड़े।
सड़क किनारे पालता परिवार खड़े खड़े ।।
मैं भी मानव, मानवता है भरपूर ।
दीन हीन जानकर कीजिए न दूर ।।
रोज कमाकर, मैं परिवार पालता ।
आप सुख से रहे, यही मैं सोचता ।।
मुझको भी आगे बढ़ने का मौका दीजिए ।
साहिब, मैं मजदूर हूँ, मजबूर न कीजिए ।।
।।जेपीएल।।