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27 Oct 2020 · 1 min read

मैं मजदूर हूं साहब

मैं मजदूर हूं साहब
मेरा नक्स हर ज़र्रे में नजर आएगा
खाओगे काजू की रोटी या
बजाओगे मन्दिर का घंटी
हर ज़र्रे में मेहनत मेरा नुमाया हो जाएगा

मैं मजदूर हूं साहब
नाम नहीं चेहरा नहीं
इतिहास में दिखता मेरा छाप गहरा नहीं
भविष्य अंधकार में है दिखता सुनहरा नहीं
पर सदियों से सदियों तक
सुई से लेकर रसोई तक
हल से लेकर महल तक
मन्दिर, मस्जिद, गिरजाघर से गुरुद्वारे तक
हम से ही अस्तित्व में आएगा
बिन हमारे सवर्ण भी आकार न पाएगा

हम मजदूर है साहब
कहो हक हमारा कब तक मारा जाएगा ???
~ सिद्धार्थ

Language: Hindi
2 Likes · 459 Views
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