मैं मगर अपनी जिंदगी को, ऐसे जीता रहा
मैं मगर अपनी ज़िंदगी को, ऐसे जीता रहा।
कभी हँसा मैं बहुत, कभी बहुत रोता रहा।।
मैं मगर अपनी जिंदगी———————-।।
गैरों की बात करुँ क्या, अपनों ने भी नहीं छोड़ा।
पीठ पीछे चलाये तीर, दिल मुझसे नहीं जोड़ा।।
लुटता रहा अपनों से मैं, बदनाम होता रहा।
मैं मगर अपनी जिंदगी———————-।।
दोस्त होकर भी उन्होंने, तारीफ कभी नहीं की।
उड़ाई हमेशा मेरी हंसी, मदद कभी नहीं की।।
दर्द दिल में छुपाये रहा, बर्बाद मैं होता रहा।
मैं मगर अपनी जिंदगी———————-।।
हाथ मिलाया जिससे भी, ख्वाब वह टूट गया।
रहा मैं हमेशा अकेला ही, प्यार मेरा रुट गया।।
देते रहे सब बददुहायें, मैं काँटों में चलता रहा।
मैं मगर अपनी जिंदगी———————-।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)