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22 Feb 2024 · 1 min read

मैं मकां उसी से बचा गया

जो लिखा नसीब में है तेरे, वही ज़िन्दगी में तू पा गया ।
कहीं कोई रोता ही रह गया, तो कहीं किसी को हँसा गया ।

कहीं मज़हबी सा बवाल है, कई नोचते मिले जिस्म को,
ये अदावतों भरा दौर है, जो जहां में लाशें बिछा गया ।

कोई प्यार में है तड़प रहा, कोई प्यार को है तरस रहा,
मैं न कह सका कभी आप से, ये मलाल दिल में छिपा गया ।

न ज़मीन पर कहीं रौनकें, न तो कहकशां में चमक बची,
लगी गुलशनों में जो आग फिर, तो धुआँ फिज़ाओं में छा गया ।

मिला दर्द अपनों से जो मुझे, ‘अरविन्द’ ने न कहा कभी,
जो हुनर तमीज़ का पास था, मैं मकाँ उसी से बचा गया ।

✍️ अरविन्द त्रिवेदी
महम्मदाबाद
उन्नाव उ० प्र०

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