मैं भी डरती हूॅं
हां ! सच कहती हूॅं
सच में मैं भी डरती हूॅं ,
मेरे स्वभाव पर मत जाना
मेरे रूआब पर मत जाना ,
सबके पास नहीं आती हूॅं
सबके पास नहीं जाती हूॅं ,
क्योंकि मुझे भी डर लगता है
ये ‘ मेरा मैं ‘ मुझसे कहता है ,
अपनों के झूठ से डरती हूॅं
अपनों के फरेब से डरती हूॅं ,
उनके अज़ीज़ बनने से डरती हूॅं
उनके अजनबी बनने से डरती हूॅं ,
उनके प्यार से डरती हूॅं
उनके तकरार से डरती हूॅं ,
उनके मेकअप से डरती हूॅं
उनके आवरण से डरती हूॅं ,
उनके ज्यादा मीठे से डरती हूॅं
उनके ज्यादा तीखे से डरती हूॅं ,
सच्चे अपनों का सामना कर सकती हूॅं
लेकिन अपनों के छिपे वार से डरती हूॅं ,
इतनी तेज़ और बहादुर मैं
अपनों की हर चाल से डरती हूॅं ,
हां ! सच कहती हूॅं
सच में मैं भी डरती हूॅं ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा )