मैं भी अपनी नींद लुटाऊं
आसमां के नीचे
खाट बिछाकर सोया हूँ
शून्य गहन विस्तार
मुझे ताक रहा बारंबार
है सोच रहा शायद
क्यों ये शख़्स सोया नहीं?
तो सुन ले आसमां
जब सरहद पर मेरा भाई
मेरी नींद के लिए
सोया नहीं हो
जो छुपाकर अपना दर्द
कभी रोया नहीं हो,
तो क्यों ना उसे
अहसास कराऊं
अपनेपन का फर्ज निभाऊं
एक रात तो उसके खातिर
मैं भी अपनी नींद लुटाऊं।
मैं भी अपनी नींद लुटाऊं।।