मैं भारत हूं …
मेरी आपसे प्रार्थना है मेरे प्यारे बच्चो !
मुझे मात्र मेरे नाम से ही तुम पुकारो ,
इंडिया भी नही ,हिंदुस्तान भी नही ,
मुझे भारत के नाम से ही पुकारो ।
इस नाम से ही मेरा अस्तित्व जुड़ा है ,
है मेरी पारंपरिक पहचान भी यही ।
दुर्गा माता का स्वरूप देखा गया मुझमें,
सनातन युगों से चली आई दृष्टि यही ।
मैं मात्र देश नही हूं मैं हूं एक संस्कार,
मुझसे ही सीखी सारे विश्व ने सभ्यता,
मैं हूं ज्ञान विज्ञान ,अध्यात्म और कला,
मुझमें समाई प्रचूर मात्रा में विद्वता।
जानना चाहते हो मुझे भली प्रकार से ,
तो मेरे बारे में सारा ज्ञान प्राप्त करो ।
वेद , पुराण ,शास्त्रों में मेरा गुणगान ,
और मेरे इतिहास का अध्ययन करो ।
मैं वास्तव में क्या हूं और कौन हूं ,
सब वृतांत मेरा जान जाओगे ।
तो मेरे बारे में जो तुम्हारा भ्रम है ,
अधूरा ज्ञान है उसे पूर्ण कर लोगे।
मेरी पहचान है मेरी महान संस्कृति ,
मेरा अलौकिक प्राकृतिक स्वरूप ।
मेरी पवित्र नदियां पर्वत और वृक्ष ,
मैं हूं वो माटी जिसने धरे कई तेजस्वी रूप ।
मैं हूं वाल्मीकि भी और वेदव्यास भी ,
मैं हूं चाणक्य भी वराहमिहिर भी ।
मुझमें वास करते है सारे सप्त ऋषि ,
मैं तुलसी भी हूं और कबीर भी ।
शिक्षा के अनेक आयामों को ,
मेरे महान विद्वानों ने छू लिया।
यहां तक के कला और साहित्य की ,
अनेक ऊंचाइयों को मेरे महान कलाकारों ने,
छू लिया ।
अब मैं अपने बारे में क्या कहूं ,
अपने मुंह अपनी बढ़ाई क्यों करूं ?
मुझे जिन्होंने जाना ह्रदय और पूर्ण
चेतना से ,वोह मुझ पर जान छिड़कते थे।
अब वो अपने वोह परम हितैषी ,
मेरे दिलबर ,मेरे महबूब अमर आत्माएं ,
कहां से पायूं?
मगर फिर भी अपनी अंतरात्मा की,
पुकार कभी फुर्सत में जरूर सुनना ।
यही आवाज आयेगी बार बार ,
उस मीठी धुन को जरूर सुनना।
“”सुजलम सुफलम मलयाज शीतलम ,
शास्य श्यामलम मातरम वंदे मातरम्…
जय भारत !!