मैं भारत हूं
मैं भारत हूं…
मैं भारत हूं…
मैं मार पालथी बैठा हूं….
कहीं सड़कों पर,
कहीं मंदिरों में,
कहीं चौराहे पर तो,
कहीं अनाथालयों में,
बस दो जून की रोटी को…
मैं दर दर हाथ फैलाता हूं।
मैं भारत हूं…
मैं भारत हूं…
मैं मिलुंगा बर्तन धोते हुए..
मैं मिलूंगा ठेला उठाते हुए।
मैं हूं लावारिस हालत में,
कहीं किस्मत को आजमाते हुए।
है मृदुल सा मेरा गात,
मैं रूखी-सूखी खाता हूं।
मैं भारत हूं..
मैं भारत हूं..
मैं सर्कस का हूं बंदर,
मुझे अमीर मदारी नचाते हैं।
करके मेरा अपहरण कुछ,
अकर्म भी करवाते हैं।
मेरी जठराग्नि बनती अभिशाप,
हर चंगुल में फंसता जाता हूं।
मैं भारत हूं..
मैं भारत हूं..
मैं मिलूंगा कहीं झाड़ियों में,
ज़ख्म से रोते बिलखते हुए।
मैं मिलूंगा बीच बाजार तुम्हें,
गर्म लोहे को पीटते हुए।
मुझे अच्छे-बुरे का ज्ञान नहीं,
बस अपनी भूख मिटाता हूं।
मैं भारत हूं..
मैं भारत हूं..
मैं मिलूंगा बूट-पॉलिश करता,
किसी हॉटल में चाय देता कहीं।
मैं मिलूंगा चुनता जुठन को,
और सोया हुआ आस-पास वहीं।
मजहब का भविष्य कैसे बनूं?
जब पढ़-लिख ही नहीं पाता हूं।
मैं भारत हूं..
मैं भारत हूं..
मैं अनेक रूपों में घूमता हूं।
हर गली,पथ को चूमता हूं।
जहां मिल जाती दो पल खुशी,
मैं भूल गमों को झूमता हूं।
मेरी हालत पर है किसकी निगाह?
हर सत्ता से ठोकर खाता हूं।
मैं भारत हूं..
मैं भारत हूं..
मैं दर दर हाथ फैलाता हूं।।