मैं भारत हूं (काव्य)
मैं भारत हूं, जी हाँ भारत
जिसने संपूर्ण दुनिया को
ठीक से गिनती सिखलाई
जिसका वृतांत सतत ही
गौरवशाली रहा जहां में
जिसे जाना जाता था
विश्व गुरु के ख्याति से
जी हाँ, मैं वही भारत हूं…
जिसने भुवन को दशमलव दिया
जिसके बिन अकृत्स्न सा था गणित
क्या-क्या, किस-किस को गिनाऊं
गिन गिन थक जाओगे तुम
जब करोना के प्रकोप से
काँप रहा था संपूर्ण विश्व
तभी वैक्सीन बनाकर
इतिवृत्त रच डाली हमनें
अपने साथ साथ हम
दूसरे देश को भी मदद की
जी हाँ, मैं वही भारत हूं…
जहा सारिता को भी आदर से
माता कह के है बुलाती
जहा धर्म, जातियों में बांटा मुल्क
फिर भी एक ही है ईश्वर
जिनकी संताने हम सब एक,
जिंदगी संस्कृति है महान
जहा एकता के साथ रहते
हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई
जी हाँ, मैं वही भारत हूं…
जो आदिकाल से ही थी महान
जहा सबको धृष्टता का है अभिमान
राजा, रंक हो या फकीर, ब्रह्मण
जहा की जनता ही चुनती
अपने योग्य शासकों को
जिसे सोने की चिड़िया
कहा करती संपूर्ण सृष्टि
रिपुओं ने मुझे झोली भर भर के
मनचाहा धन ले लूट भागा
वह भी एक दो बार नहीं,
बार बार बारंबार
जी हाँ, मैं वही भारत हूं…
कवि:- अमरेश कुमार वर्मा