मैं भारत हूँ
मैं भारत हूँ-( काव्य संग्रह)
श्री भीम प्रसाद प्रजापति
#मैं भारत हूँ# –
पुस्तक का शीर्षक ही स्प्ष्ट करता है कि काव्य संग्रह के अंतर्गत सामाजिक ,राष्ट्रीय ,राजनीतिक समसामयिक ,प्राकृतिक आदि विभिन्न विषयों पर काव्य मोतियों को पिरोकर माला संग्रह के रूप में समाज समय राष्ट्र एव हिंदी साहित्य के नित्य निरंतर प्रभा प्रवाह में प्रस्तुत की गई है ।
राष्ट्र समाज मे पल प्रति पल घटती घटनाओं परिवर्तन शील समाज के नैतिक आचरण एव मर्यादाओं का कवि मन भावों से प्रस्फुटित होकर सुंदर शब्दो के संयोजन एव शृंखला में पिरोकर प्रस्तुत किया है।
#मैं भारत हूँ
मैं भारत हूँ
सदियों से संस्कृति लिए
इंसानों में आरत हूँ
मैं भारत हूँ# केंद्रीय विचार ही कवि के काव्य संग्रह कि आत्मा है जो किसी भी मन को स्पर्श करते स्पंदित करते है।
कवि भीम प्रसाद प्रजापति द्वरा रचित काव्य संग्रह# मैं भारत हूँ #निश्चित रूप उनके जीवन के पल प्रति पल कदम दर कदम अनुभूतियों के स्वर
है ।
#मैं भारत हूँ #काव्य संग्रह का प्रथम सोपान ही जवानों कि जवानों की भवनाओं एव उनके त्याग समर्पण एव राष्ट्र प्रेम कि अभिव्यक्ति मैं भारत हूँ कि महिमा गरिमा का सुन्दर शुभारम्भ है।
# हम रहे न रहे तुमको रहना होगा मेरी जुदाई का दर्द सहना होगा#
कुर्सी महिमा वर्तमान समय मे राजनीति से लेकर समाज राष्ट्र के सभी विधाओं में नकारात्मक प्रतिस्पर्धा कि जननी है कवि ने बहुत गम्भीर वर्तमान विषय उठाकर विकृत करते समाज को दर्पण दिखाने का उत्कृष्ट प्रयास किया है ।
अन्याय –
# लूट रहे है जहां तहां सब
आंखे मुद कर #
समाज के नैतिक पतन पर प्रहार करती है श्रेष्ठ समाज के पतनोन्मुख आचरण के प्रति अंकुरित अंगार कि ज्वाला है शब्दो के रूप में प्रज्वलित हो समय समाज को सतर्क करने का भगीरथ प्रयास है कवि भीम प्रजापति जी का ।
समीक्षक-नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।
काव्य संग्रह में गीत ,गलती ,
शिष्टाचार ,मौसमी गुलाब,भ्र्ष्टाचार आदि कविताएं कवि हृदय से परिवेश परिस्थिति के प्रभाव प्रेरणा के स्वर शब्दो से ओत प्रोत है ।
समाज राष्ट्र में बढ़ रहे अपराध भय भ्रष्टाचार प्रकृति और प्राणि के मध्य असंतुलन के भयानक प्रभाव #सुनामी -2004 ,बिहार की बाढ़#
गरीबी युवा के जीवन उत्सव कि नौकरी जीवन मंगल प्रकाश दिपावली उत्सव का उत्साह नववर्ष के विषय मे कवि ने जो जिया देखा वह व्यक्त किया है ।
राजनीतिक पतन सामाजिक संवेदन शून्यता के आतंक से बनते बिगड़ते सामाजिक समरसता संबंध पर कवि का व्यथित मन बरबस बोल उठता है-
#चुनाव का बज गया अब गांव में घूमे नेता जी #
#दल बदल में पांच वर्ष बीते कुछ न कर सके प्रदेश के चीते#
#वोट के लुटेरे घर आएंगे तेरे शाम सुबह घर लगाएंगे फेरे वोट के लुटेरे#
#खूब लुटा तू भाई वाह वाही तेरे पांव थे पड़ते नही जमीं पर #
वाह रे इंसान
#तू ही बच्चा तू ही बूढ़ा जब करेगा तू भ्र्ष्टाचार होगी नई बीमारी कहा#
नागपुर एवं नैनीताल का यात्रा स्मरण सुंदर सारगर्भित भावो में कवि कि अभिव्यक्ति सराहनीय है अंतरराष्ट्रीय
राजनीति के और राष्ट्रीय राजनीति का
भारत अमेरिकी न्यूक्लियर डील आदि
अति महत्वपूर्ण प्रभवी विषयों पर कवि के भाव विचार प्रासांगिक एव प्रामाणिक एव सारगर्भित एव संदेशपरक है।
भीम प्रसाद प्रजापति सहृदय ,शौम्य एव विमन्र विद्वत व्यक्तित्व है ऐसा व्यक्ति जो चैतन्य स्थिति के प्रत्येक पल प्रहर में कुछ न कुछ सकारात्मक
सार्थक कृति से समय समाज को जागरण जागृति का संदेश देता है जिसके लिये वह समाज राष्ट्र के साथ अपने भावों की अंतर्मन गहराई से पल प्रहर कि प्रत्येक घटना गतिविधियों का संवेदनशील बोध रखता है ।
वास्तव में भीम प्रजापति जी देवरिया कि गौरवशाली माटी के लबकनी गांव की शोधी माटी कि वह सुगन्ध है जो राष्ट्र चेतना को सुगंधित करती गौरवान्वित करती है ।
वास्तव में उनकी कृति# मैं भारत हूँ # यही कहती है ।
मुझे यह ज्ञात नही कि यह भीम प्रजापति जी कि प्रथम प्रकाशित काव्य संग्रह है या अन्य इसमें आलोचनात्मक दृष्टिकोण से व्यथित विद्वत मन एव भावो कि वेदना बहुत स्प्ष्ट परिलक्षित होती है जिसके अनुसार कवि हृदत कि चाहत है कि शीघ्रता शीघ्र समय राष्ट्र समाज के समक्ष आद्योपांत आचरण को प्रस्तुत कर उसमें क्रांतिकारी परिवर्तन का शंखनाद किया जाय।
# मैं भारत हूँ # के शब्द स्वर प्रस्तुति का परम प्रकाश भी है जो वर्तमान से भविष्य की दृष्टि दिशा दृष्टिकोण का काव्य प्रवाह का दस्तावेज है जो निश्चित रूप से प्रशसनीय एव स्वागत योग्य है।
काव्य संग्रह में व्याकरण त्रुटियां नही है एव प्रकाशकीय त्रुटियां भी नही है हां कविताओं कि क्रमबद्धता अवश्य बेतरतीब है एक भाव विषय एक क्रम में होने चाहिये।
कवि भीम प्रजापति जी निश्चित रूप से अपने उद्देश्यों एव भावों जन जन तक पंहुचाने में सफल सक्षम हुऐ है।।