मैं भारत हूँ–3
: जटा बढ़ाए बंजारा मन
ढूढ़ रहा नित ठौर..!!
इकतारा बजता टुनटुन
मैं भारत हूँ।
अतीत के स्वर्णिम पन्नों में
बिखरी पुरा संपदा
करती गौरव गान मैं भारत हूँ।
ललित कलाएं,शिल्प कलायें
उँचे घर ,महल मंदिर बनायें
लहराये ध्वजा की शान
मैं भारत हूँ
माझी की सुन तान मगन मन डोले
चलती पुरवैया भी तो हौले हौले
सहला जाती मंद बयार
मैं भारत हूँ ।
पाखी