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7 May 2020 · 1 min read

मैं बेबस बैठा हूँ

मैं बेबस बैठा हूँ,
कब से रूठा हूँ,

देख कर प्यारे प्यारे जन,
मन होता था अति प्रसन्न,

जा रहे सब हमे छोड़,
जग के रिश्तों को तोड़,

जिनकी गोदी में हम खेले,
जिनसे थे खुशियों के मेले,

बचपन से थे जो अपने,
जिनसे थे प्रेम के सपने,

टूट रहे माला के मोती,
बुझ रही प्रेम की ज्योति,

गिर गिर कर अब आँसू सूख रहे,
कब तक अपनो का बिछोह सहे,

माटी की काया हर दिन टूट रही,
मोह माया धीरे धीरे छूट रही,

जो आते है, वो जाते है,
पर कितना दुःखी कर जाते है,

जितना जीवन को समझे,
उतना ही उसमें सब उलझे,

उलझनों को सुलझाते सुलझाते,
देखो खुद ही उलझ कर रह जाते,

जब आँख खुलती,
भौर हो चुकी रहती,

फिर से दिन निकलता,
सब कुछ वैसे ही चलता,

दिन के सुखमय उजियाले में,
मोह माया के फँसे पाले में,

जब दिन ढलता अँधियारा आता,
फिर याद करते, तब समय छूट जाता,

।।।जेपीएल।।।

Language: Hindi
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