मैं बेटी हूं _ मुझे भी तो __
मैं बेटी हूं मुझे भी तो_ काम पर आप जाने दे।
घर से निकल कर के_नाम अपना कमाने दे।।
बंदिशे लगाते मुझपर _ बाहर जाने न देते।
करूंगी काम अच्छे ही_ मुझको भी पाने दे।।
देख लिया परिणाम पढ़ाई में अच्छा देती हूं।
सपना बेटों के जैसा मुझको भी सजाने दे।।
भटकूंगी न अटकूंगी भरोसा तुम करो मेरा।
दाव किस्मत का मेरी मुझको भी लगाने दे।।
जो छेड़ेंगे न छोडूंगी हड्डियां तोड़ दूंगी मैं।
मेरे फौलादी इरादों को परवान चढ़ाने दे।।
बेटियां कम नहीं होती कभी बेदम नहीं होती।
अपने ही दम पर मुझको मंजिल पाने दे।।
“अनुनय” बेटियां गौरव_ दो कुलों का उजियारा।
चमचमाते सपने है इनके जिन्हे जगमगाने दे।
राजेश व्यास अनुनय